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दिलों में आग लगाओ नवा-कशी ही करो | शाही शायरी
dilon mein aag lagao nawa-kashi hi karo

ग़ज़ल

दिलों में आग लगाओ नवा-कशी ही करो

हसन नईम

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दिलों में आग लगाओ नवा-कशी ही करो
नहीं है शग़्ल-ए-जुनूँ कुछ तो शाइ'री ही करो

ये क्या कि बैठ रहे जा के ख़ल्वत-ए-ग़म में
नहीं है कुछ तो चलो चल के मय-कशी ही करो

यही हुनर का सिला है तो नाक़िदान-ए-सुख़न
किसी उसूल के पर्दे में दुश्मनी ही करो

सदा-ए-दिल न सुनो अर्ज़-ए-हाल तो सुन लो
कहाँ ये फ़र्ज़ है तुम पर कि मुंसिफ़ी ही करो

यही 'नईम' बहुत है जो काट लो ये रात
ये कुछ ज़रूर नहीं है कि रौशनी ही करो