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दिल तक हो चाक तेग़ जो सर पर लगाइए | शाही शायरी
dil tak ho chaak tegh jo sar par lagaiye

ग़ज़ल

दिल तक हो चाक तेग़ जो सर पर लगाइए

रौनक़ टोंकवी

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दिल तक हो चाक तेग़ जो सर पर लगाइए
आशिक़ हूँ हाथ सोच-समझ कर लगाइए

चेहरे पे नाज़ुकी से न आए कहीं गज़ंद
रुख़्सार से न आप गुल-ए-तर लगाइए

साक़ी के लुत्फ़-ए-ख़ास की तअ'ज़ीम है ज़रूर
आँखों से जाम-ए-बादा-ए-अहमर लगाइए

है जी में बहर-ए-नूर-ए-निगह उस की ख़ाक-ए-पा
सुर्मा की जा अगर हो मयस्सर लगाइए

ये दिल में है कि छोड़ के 'रौनक़' जहान को
कूचे में उस निगार के बिस्तर लगाइए