दिल-सोख़्ता को अपने जलाया ग़ज़ब किया
नैरंग तुम ने क्या ये दिखाया ग़ज़ब किया
ज़िंदा किया है हसरत-ए-मुर्दा को बेवफ़ा
तू बा'द-ए-मर्ग गोर पे आया ग़ज़ब किया
ये दर्द-ए-दर्द-मंद तमाशा दिखाएगा
आफ़त-रसीदा को जो सताया ग़ज़ब किया
हम ख़ानुमाँ-ख़राब भटकते कहाँ फिरें
बैठे बिठाए उस ने उठाया ग़ज़ब किया
सब कह रहे थे बुलबुल-ए-कश्मीर के हरीफ़
उस गुल ने अपना यार बनाया ग़ज़ब किया
मजज़ूब-ओ-मस्त पीर-ए-मुग़ाँ क्यूँ न वो रहे
'साक़ी' को जाम-ए-जज़्ब पिलाया ग़ज़ब किया
ग़ज़ल
दिल-सोख़्ता को अपने जलाया ग़ज़ब किया
पंडित जवाहर नाथ साक़ी