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दिल-सोख़्ता को अपने जलाया ग़ज़ब किया | शाही शायरी
dil-soKHta ko apne jalaya ghazab kiya

ग़ज़ल

दिल-सोख़्ता को अपने जलाया ग़ज़ब किया

पंडित जवाहर नाथ साक़ी

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दिल-सोख़्ता को अपने जलाया ग़ज़ब किया
नैरंग तुम ने क्या ये दिखाया ग़ज़ब किया

ज़िंदा किया है हसरत-ए-मुर्दा को बेवफ़ा
तू बा'द-ए-मर्ग गोर पे आया ग़ज़ब किया

ये दर्द-ए-दर्द-मंद तमाशा दिखाएगा
आफ़त-रसीदा को जो सताया ग़ज़ब किया

हम ख़ानुमाँ-ख़राब भटकते कहाँ फिरें
बैठे बिठाए उस ने उठाया ग़ज़ब किया

सब कह रहे थे बुलबुल-ए-कश्मीर के हरीफ़
उस गुल ने अपना यार बनाया ग़ज़ब किया

मजज़ूब-ओ-मस्त पीर-ए-मुग़ाँ क्यूँ न वो रहे
'साक़ी' को जाम-ए-जज़्ब पिलाया ग़ज़ब किया