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दिल पे जो गुज़री कोई क्या जाने | शाही शायरी
dil pe jo guzri koi kya jaane

ग़ज़ल

दिल पे जो गुज़री कोई क्या जाने

जोश मलसियानी

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दिल पे जो गुज़री कोई क्या जाने
ये तो हम जानें या ख़ुदा जाने

ख़ाक झेलेगा वो मुसीबत-ए-इश्क़
जो लगा कर न फिर बुझा जाने

तू ही अपना मक़ाम जानता है
इक ज़ुलूम-ओ-जुहूल क्या जाने

क्या करे अर्ज़-ए-मुद्दआ वो बशर
इब्तिदा को जो इंतिहा जाने

बादा-नोशों का हश्र क्या होगा
मुझ बला-नोश की बला जाने

बात रिंदी की मुझ को आती है
पारसाई की पारसा जाने

तुझ को अपनी ख़बर नहीं ऐ 'जोश'
तो ख़ुदाई के राज़ क्या जाने