दिल ओ निगाह में उस को अगर नहीं रहना 
'शनास' मुझ को भी फिर दर-ब-दर नहीं रहना 
अगर मैं आऊँगा सदियों की उम्र लाऊँगा 
कि तेरे पास मुझे मुख़्तसर नहीं रहना 
ये काएनात मिरी उँगलियों पे नाचती है 
मुझे सितारों के ज़ेर-ए-असर नहीं रहना 
मैं जानता हूँ मगर दिल को कौन समझाए 
'शनास' उस को मिरा हम-सफ़र नहीं रहना
        ग़ज़ल
दिल ओ निगाह में उस को अगर नहीं रहना
फ़हीम शनास काज़मी

