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दिल ओ निगाह में उस को अगर नहीं रहना | शाही शायरी
dil o nigah mein usko agar nahin rahna

ग़ज़ल

दिल ओ निगाह में उस को अगर नहीं रहना

फ़हीम शनास काज़मी

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दिल ओ निगाह में उस को अगर नहीं रहना
'शनास' मुझ को भी फिर दर-ब-दर नहीं रहना

अगर मैं आऊँगा सदियों की उम्र लाऊँगा
कि तेरे पास मुझे मुख़्तसर नहीं रहना

ये काएनात मिरी उँगलियों पे नाचती है
मुझे सितारों के ज़ेर-ए-असर नहीं रहना

मैं जानता हूँ मगर दिल को कौन समझाए
'शनास' उस को मिरा हम-सफ़र नहीं रहना