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दिल ओ निगाह में कुछ इस तरह समा गई है | शाही शायरी
dil o nigah mein kuchh is tarah sama gai hai

ग़ज़ल

दिल ओ निगाह में कुछ इस तरह समा गई है

ख़ुर्शीद रब्बानी

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दिल ओ निगाह में कुछ इस तरह समा गई है
तिरी नज़र तो मुझे आईना बना गई है

हवा-ए-ताज़ा का झोंका इधर से क्या गुज़रा
गिरे पड़े हुए पत्तों में जान आ गई है

मिरे ग़मों का मुदावा करेगा क्या कोई
शिकस्त-शीशा-ए-दिल की कहीं सदा गई है

ये दिल कि ज़र्द पड़ा था कई ज़मानों से
मैं तेरा नाम लिया और बहार आ गई है

भुला दिया है उसे नाज़ उठाने वालों ने
इसी लिए तो उसे मेरी याद आ गई है