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दिल ओ निगाह में इक रौशनी सी लगती है | शाही शायरी
dil o nigah mein ek raushni si lagti hai

ग़ज़ल

दिल ओ निगाह में इक रौशनी सी लगती है

मसूदा हयात

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दिल ओ निगाह में इक रौशनी सी लगती है
तुम्हारी याद से वाबस्तगी सी लगती है

ये क्या सितम है महकती हुई बहारों में
हर एक चेहरे पे पज़मुर्दगी सी लगती है

ये किस के हाथ में आया है दौर-ए-पैमाना
लबों पे अपने बड़ी तिश्नगी सी लगती है

हम अपने घर में भी हैं अब मुसाफ़िरों की तरह
हर एक चीज़ यहाँ अजनबी सी लगती है

हर एक साँस पे पहरा है ना-ख़ुदाओं का
ये ज़िंदगी भी कोई ज़िंदगी सी लगती है

हज़ार शौक़ नुमायाँ थे जिस नज़र से कभी
वही निगाह बड़ी अजनबी सी लगती है

'हयात' कौन सी अब राह इख़्तियार करें
हर एक राह बड़ी अजनबी सी लगती है