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दिल ने पाया जो मिरे मुज़्दा तिरी पाती का | शाही शायरी
dil ne paya jo mere muzhda teri pati ka

ग़ज़ल

दिल ने पाया जो मिरे मुज़्दा तिरी पाती का

हसरत अज़ीमाबादी

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दिल ने पाया जो मिरे मुज़्दा तिरी पाती का
मुँह फिरा सू-ए-बदन जान-ए-ब-लब आती का

यूँ तो ऐ यार-ए-दिल-अफ़रोज़ तू सब का है वले
दाग़ जाँ-सोज़ निराया है मिरी छाती का

दिल दम-ए-आह-ए-सहर-ख़ेज़ चला जाता है
मुतरिबा चुप है तू क्यूँ वक़्त है प्रभाती का

दिल-ए-अफ़सुर्दा को है सोज़-ए-दरूँ से क्या रब्त
काम क्या ख़ाना-ए-वीराँ में दिए-बाती का

इस जहाँ में सिफ़त-ए-इश्क़ से मौसूफ़ हैं हम
न करो ऐब हमारे हुनर-ए-ज़ाती का

यार सुन सुन के सब अहवाल-ए-ख़राब-ए-'हसरत'
बोला क्या काम है याँ ऐसे ख़राबाती का