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दिल मिला दिल का मुद्दआ' न मिला | शाही शायरी
dil mila dil ka muddaa na mila

ग़ज़ल

दिल मिला दिल का मुद्दआ' न मिला

जामी रुदौलवी

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दिल मिला दिल का मुद्दआ' न मिला
जी लिए जीने का मज़ा न मिला

बंदा-ए-ज़र तो हर क़दम पे मिले
एक भी बंदा-ए-ख़ुदा न मिला

कोई शिकवा नहीं मुझे उन से
दिल ही तो है मिला मिला न मिला

बेवफ़ा ने बना दिया ये हाल
वो तो कहिए कि बा-वफ़ा न मिला

कुछ मिला हो तो बैठ कर जोड़ें
क्या मिला हम को और क्या न मिला

ब-ख़ुदा कुछ भी लुत्फ़ जीने में
लज़्ज़त-ए-दर्द के सिवा न मिला

सई-ए-नाकाम का सितम ये है
नुक्ता-चीनों को इक बहाना मिला

मुज़्महिल हो गईं सलाहियतें
जब ज़माने से हौसला न मिला

अजनबी पूछते हैं 'जामी' को
हम-सफ़ीरों से आसरा न मिला