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दिल में याद-ए-रफ़्तगाँ आबाद है | शाही शायरी
dil mein yaad-e-raftagan aabaad hai

ग़ज़ल

दिल में याद-ए-रफ़्तगाँ आबाद है

जमाल एहसानी

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दिल में याद-ए-रफ़्तगाँ आबाद है
वर्ना ये दिल भी कहाँ आबाद है

एक मैं आबाद हूँ इस शहर में
और इक मेरा मकाँ आबाद है

किस के ये नक़्श-ए-क़दम हैं ख़ाक पर
कौन ऐसे में यहाँ आबाद है

बाब-ए-उम्र-ए-राएगाँ की लौह पर
हर्फ़-ए-एहसास-ए-ज़ियाँ आबाद है

मेरे होने से न होना है मिरा
आग जलने से धुआँ आबाद है

रौनक़-ए-दिल का है आलम दीदनी
ख़ाना-ए-आवारगाँ आबाद है

इक दरीचा उस गली में आज तक
बे-चराग़ ओ बे-निशाँ आबाद है