EN اردو
दिल में तूफ़ान उठाते हुए जज़्बात भी हैं | शाही शायरी
dil mein tufan uThate hue jazbaat bhi hain

ग़ज़ल

दिल में तूफ़ान उठाते हुए जज़्बात भी हैं

करम हैदरी

;

दिल में तूफ़ान उठाते हुए जज़्बात भी हैं
हम हैं ख़ामोश कि कुछ अपनी रिवायात भी हैं

मोहतसिब ही से नहीं नाला-ब-लब जाम-ओ-सुबू
संग उठाए हुए ख़ुद अहल-ए-ख़राबात भी हैं

मस्तियों में कभी मिल जाते हैं इंसाँ अब भी
जैसे सहराओं में शादाब मक़ामात भी हैं

देखिए मुझ से वो कब आ के गले मिलता है
थे जो मेरे वही अब ग़ैर के हालात भी हैं

अश्क ही अश्क नहीं ग़ौर से देखोगे अगर
इन सुलगती हुई आँखों में हिकायात भी हैं

उन के दामन पे लहू किस को यक़ीं आएगा
जिन के चेहरों पे तक़द्दुस की अलामात भी हैं

क्या कहीं कौन सी राहों में हैं पामाल 'करम'
हम कि ज़िंदा हैं मगर कुश्ता-हालात भी हैं