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दिल में तिरे जो कोई घर कर गया | शाही शायरी
dil mein tere jo koi ghar kar gaya

ग़ज़ल

दिल में तिरे जो कोई घर कर गया

मोहम्मद रफ़ी सौदा

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दिल में तिरे जो कोई घर कर गया
सख़्त मुहिम थी कि वो सर कर गया

वहम-ए-ग़लत-कार ने दिल ख़ुश किया
किस पे न जाने वो नज़र कर गया

जा ही भिड़ा तुझ सफ़-ए-मिज़्गाँ से यार
दिल तो मिरा ज़ोर-ए-जिगर कर गया

रात मिला था मुझे तन्हा रक़ीब
यार ख़ुदा का ही मैं डर कर गया

फ़ैज़ तिरे वस्फ़-ए-बुना-गोश का
अपने सुख़न को तो गुहर कर गया

देख ली साक़ी की भी दरिया-दिली
लब न हमारे कभू तर कर गया

क्यूँ के कराहूँ न शब ओ रोज़ में
दर्द मिरे पहलू में घर कर गया

नफ़अ को पहुँचा ये तुझे दे के दिल
जान का अपनी में ज़रर कर गया

और ग़ज़ल अब कोई सौदा तू कह
ये तो यूँही थी मैं नज़र कर गया