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दिल में इक जज़्बा-ए-बेदाद-ओ-जफ़ा ही होगा | शाही शायरी
dil mein ek jazba-e-bedad-o-jafa hi hoga

ग़ज़ल

दिल में इक जज़्बा-ए-बेदाद-ओ-जफ़ा ही होगा

अख़्तर होशियारपुरी

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दिल में इक जज़्बा-ए-बेदाद-ओ-जफ़ा ही होगा
वो ख़ुदा-वंद भी होगा तो ख़ुदा ही होगा

गर्द सी उड़ती नज़र आती है आँधी होगी
दूर तक नक़्श-ए-क़दम हैं कोई राही होगा

हम से जो पूछना है पूछ लो वर्ना कल तक
किस को अंदाज़ा-ए-ना-कर्दा-गुनाही होगा

कहीं गिरती हुई दीवारें कहीं झुकती छतें
आप कहते हैं तो ये क़स्र-ए-वफ़ा ही होगा

फूल से तरसते हुए लोग ख़राबों में कहाँ
दश्त-ए-वहशत में कोई आबला-पा ही होगा

जाते जाते मिरे दरवाज़े के पट खोल गई
ये भी 'अख़्तर' कोई अंदाज़-ए-सबा ही होगा