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दिल में है इत्तिफ़ाक़ से दश्त भी घर के साथ साथ | शाही शायरी
dil mein hai ittifaq se dasht bhi ghar ke sath sath

ग़ज़ल

दिल में है इत्तिफ़ाक़ से दश्त भी घर के साथ साथ

इदरीस बाबर

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दिल में है इत्तिफ़ाक़ से दश्त भी घर के साथ साथ
इस में क़याम भी करें आप सफ़र के साथ साथ

दर्द का दिल का शाम का बज़्म का मय का जाम का
रंग बदल बदल गया एक नज़र के साथ साथ

ख़्वाब उड़ा दिए गए पेड़ गिरा दिए गए
दोनों भुला दिए गए एक ख़बर के साथ साथ

शाख़ से इस किताब तक ख़ाक से ले के ख़्वाब तक
जाएगा दिल कहाँ तलक उस गुल-ए-तर के साथ साथ

इस को ग़ज़ल समझ के ही सरसरी देखिए सही
ये मिरा हाल-ए-दिल भी है अर्ज़-ए-हुनर के साथ साथ