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दिल में अपने नहीं कोई जुज़-यार | शाही शायरी
dil mein apne nahin koi juz-yar

ग़ज़ल

दिल में अपने नहीं कोई जुज़-यार

क़ाएम चाँदपुरी

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दिल में अपने नहीं कोई जुज़-यार
लैसा-फ़िद्दार-ए-ग़ैरहू दय्यार

कुफ़्र ओ दीं से नहीं कुछ आप को बहस
सर-ए-तस्बीह ओ गर्दन-ए-ज़ुन्नार

दाग़-ए-अश्क आस्तीं से उड़ते हैं
मुफ़्त जाती है हाथ से ये बहार

हम वो आफ़त-ए-तलब हैं है जिन को
ज़ख़्म-ए-शमशीर मरहम-ए-ज़ंगार

याद में किस की रात रोया हूँ
ग़र्क़-ए-ख़ूँ है हनूज़ जेब-ओ-कनार

आह क्या कीजे ज़ुल्फ़ ओ रुख़ उस का
चित चढ़ा ही रहे है लैल ओ नहार

नासेहा तर्क कीजे किस किस का
जीते-जी को तो सब कुछ है दरकार

इश्क़-बाज़ी को क्या करेगा तू
गो कि छोड़ा मैं इक शराब ओ क़िमार

हम ने देखा है दाग़-ए-दिल 'क़ाएम'
वक़िना रब्बना अज़ाबन्नार