दिल को ले कर हम से अब जाँ भी तलब करते हैं आप
लीजिए हाज़िर है पर ये तो ग़ज़ब करते हैं आप
मोरिद-ए-तक़्सीर गर होते तो लाज़िम थी सज़ा
ये जफ़ा फिर कहिए हम पर किस सबब करते हैं आप
करते हो अबरू से कुश्ता रुख़ से देते हो जिला
हुस्न में एजाज़ क्या क्या रोज़-ओ-शब करते हैं आप
क़ैस से जो था किया दर-पर्दा लैला ने सुलूक
सो वही ऐ मेहरबाँ हम से भी अब करते हैं आप
बे-कली होती है हसरत से दिल-ए-सद-चाक को
अपनी ज़ुल्फ़-ए-अम्बरीं को शाना जब करते हैं आप
हम ने पूछा फिर भी उस की जाँ फिरी सब जिस्म में
नज़'अ में दूरी से जिस को जाँ-ब-लब करते हैं आप
हँस के फ़रमाया 'नज़ीर' अपनी दुआ-ए-लुत्फ़ से
ये भी हो सकता है क्या इस का ओजब करते हैं आप
ग़ज़ल
दिल को ले कर हम से अब जाँ भी तलब करते हैं आप
नज़ीर अकबराबादी