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दिल को बख़्शा सोज़-ओ-गुदाज़ | शाही शायरी
dil ko baKHsha soz-o-gudaz

ग़ज़ल

दिल को बख़्शा सोज़-ओ-गुदाज़

मोहम्मद मंशाउर्रहमान ख़ाँ मंशा

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दिल को बख़्शा सोज़-ओ-गुदाज़
ऐ ग़म तेरी उम्र-ए-दराज़

इश्क़-ओ-हवस में रिश्ता कैसा
एक हक़ीक़त एक मजाज़

बेश नहीं है दिल की क़ीमत
एक निगाह-ए-लुत्फ़-नवाज़

इस का छुपाना खेल नहीं है
राज़ और वो भी उन का राज़

आए कोई हम से पूछे
मर कर जीने के अंदाज़

जज़्ब-ए-दरूँ का फ़ैज़ है 'मंशा'
फ़िक्र-ए-सुख़न की ये परवाज़