दिल की दुनिया में तुझे ला के मैं हैराँ कर दूँ
आ तुझे दर्द-ए-मोहब्बत से फ़रोज़ाँ कर दूँ
चंद लम्हे जो मयस्सर हों सुकूँ के मुझ को
राह निकले तो हर इक दर्द का दरमाँ कर दूँ
इन्क़िलाबात वही हैं कि जो यकसर उभरें
गर हो तख़रीब ग़दर नाम में चस्पाँ कर दूँ
उस के घर जाऊँ रही जिस से अदावत बरसों
थोड़ी तकलीफ़ सही उस को पशेमाँ कर दूँ
आरज़ू है कि रहूँ ज़िंदा मोहब्बत बन कर
हूँ जहाँ दफ़्न 'असर' उस को गुलिस्ताँ कर दूँ

ग़ज़ल
दिल की दुनिया में तुझे ला के मैं हैराँ कर दूँ
मर्ग़ूब असर फ़ातमी