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दिल की धड़कन थम गई दर्द-ए-निहाँ बढ़ता गया | शाही शायरी
dil ki dhaDkan tham gai dard-e-nihan baDhta gaya

ग़ज़ल

दिल की धड़कन थम गई दर्द-ए-निहाँ बढ़ता गया

सय्यद मोहम्मद असकरी आरिफ़

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दिल की धड़कन थम गई दर्द-ए-निहाँ बढ़ता गया
जल गई हस्ती मिरी लेकिन धुआँ बढ़ता गया

ज़िंदगी तू ही बता किस जा मुझे ले कर चली
अजनबी रस्तों पे आख़िर मैं कहाँ बढ़ता गया

दश्त-ए-वहशत में जला कर ज़ुल्मतों की बस्तियाँ
रौशनी की सम्त मेरा कारवाँ बढ़ता गया

अपनी बर्बादी का ज़िम्मेदार मैं या कोई और
ज़ेहन में हर वक़्त मेरे ये गुमाँ बढ़ता गया

रूह ने छोड़ा जो तन्हा जिस्म को वक़्त-ए-नज़ाअ'
बा'द फिर उस के फ़िराक़-ए-जिस्म-ओ-जाँ बढ़ता गया

तिफ़्ल से ले कर अदम तक ज़िंदगी के साथ साथ
सर पे मेरे बार-ए-उम्मीद-ए-गराँ बढ़ता गया

ज़िंदगी और मौत का यूँ सिलसिला चलता रहा
तंग था पिछ्ला जहाँ अगला जहाँ बढ़ता गया

हर क़दम था साथ 'आरिफ़' मेरा नफ़्स-ए-दाइमी
इब्तिदा से इंतिहा तक मैं जहाँ बढ़ता गया