दिल की दहलीज़ सूनी सूनी है
अब तमन्नाओं की बरात नहीं
जा लगेगा सफ़ीना साहिल से
ना-ख़ुदा लाख अपने सात नहीं
लोग फिर क्यूँ ख़ुशी पे मरते हैं
जानते हैं उसे सबात नहीं
दिन बनेगी न रात किस ने कहा
दिन न होगा कभी ये रात नहीं
इतने तन्हा न थे कभी 'आसी'
याद भी उन की अब तो सात नहीं
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ग़ज़ल
दिल की दहलीज़ सूनी सूनी है
आसी रामनगरी