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दिल की दहलीज़ सूनी सूनी है | शाही शायरी
dil ki dahliz suni suni hai

ग़ज़ल

दिल की दहलीज़ सूनी सूनी है

आसी रामनगरी

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दिल की दहलीज़ सूनी सूनी है
अब तमन्नाओं की बरात नहीं

जा लगेगा सफ़ीना साहिल से
ना-ख़ुदा लाख अपने सात नहीं

लोग फिर क्यूँ ख़ुशी पे मरते हैं
जानते हैं उसे सबात नहीं

दिन बनेगी न रात किस ने कहा
दिन न होगा कभी ये रात नहीं

इतने तन्हा न थे कभी 'आसी'
याद भी उन की अब तो सात नहीं