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दिल की बात क्या कहिए दिल अजीब बस्ती है | शाही शायरी
dil ki baat kya kahiye dil ajib basti hai

ग़ज़ल

दिल की बात क्या कहिए दिल अजीब बस्ती है

आसी रामनगरी

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दिल की बात क्या कहिए दिल अजीब बस्ती है
रोज़ ये उजड़ती है और रोज़ बस्ती है

पहले अपनी हालत पे हँस ले ख़ुद ही जी भर के
देख कर मुझे दुनिया तंज़ से जो हँसती है

आज का ज़माना भी वाह क्या ज़माना है
ज़िंदगी बहुत महँगी मौत कितनी सस्ती है

उस से दूर क्या होगी तीरगी ज़माने की
शम्अ' रौशनी को ख़ुद आज जब तरसती है