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दिल जलाने से कहाँ दूर अंधेरा होगा | शाही शायरी
dil jalane se kahan dur andhera hoga

ग़ज़ल

दिल जलाने से कहाँ दूर अंधेरा होगा

गोपाल मित्तल

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दिल जलाने से कहाँ दूर अंधेरा होगा
रात ये वो है कि मुश्किल से सवेरा होगा

क्यूँ न अब वज़-ए-जुनूँ तर्क करें लौट चलें
उस से आगे जो है जंगल वो घनेरा होगा

ये ज़रूरी तो नहीं इतना भी ख़ुश-फ़हम न बन
वो ज़माना जो न मेरा है न तेरा होगा

इतना भी संग-ए-मलामत से डरा मत नासेह
सर सलामत है तो इस शहर का फेरा होगा

ख़िदमत-ए-राज-महल पर उन्हें देखा मामूर
जो ये कहते थे कि सरदार बसेरा होगा

राह-ए-पुर-पेच को सहल इतना बताने वाला
राहबर हो नहीं सकता है लुटेरा होगा

वो भी इंसान है ऐ दिल उसे इल्ज़ाम न दे
जाने उस को भी किन आफ़ात ने घेरा होगा