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दिल ही दिल में दर्द के ऐसे इशारे हो गए | शाही शायरी
dil hi dil mein dard ke aise ishaare ho gae

ग़ज़ल

दिल ही दिल में दर्द के ऐसे इशारे हो गए

गुलज़ार देहलवी

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दिल ही दिल में दर्द के ऐसे इशारे हो गए
ग़म ज़माने के शरीक-ए-ग़म हमारे हो गए

जो अभी महफ़ूज़ हैं तन्क़ीद है उन का शिआ'र
हाल उन का पूछिए जो बे-सहारे हो गए

बिन खिले मुरझा गईं कलियाँ चमन में किस क़दर
ज़र्द-रू किस दर्जा हाए माह-पारे हो गए

अम्न की ताक़त को कुचला सच को रुस्वा कर दिया
दुश्मनों के चार-दिन में वारे-न्यारे हो गए

ये ज़माना किस क़दर बार-ए-गराँ साबित हुआ
अपने बेगाने हुए बेगाने प्यारे हो गए

दुश्मन-ए-दीं दुश्मन-ए-जाँ दुश्मन-ए-अम्न-ओ-सुकूँ
एक दो का ज़िक्र क्या सारे के सारे हो गए

डूबने वालों से ज़ाइद खा रहा है उन का ग़म
जिन को साहिल तेग़-ए-उर्यां के किनारे हो गए

अश्क-ए-ग़म में नूर-ए-रहमत इस तरह शामिल रहा
चाँद-तारों से सिवा ये चाँद-तारे हो गए

हैफ़ गुलज़ार-ए-जहाँ में छा गई ग़म की घटा
जो शगूफ़े थे चमन में वो शरारे हो गए