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दिल है तो मुक़ामात-ए-फुग़ाँ और भी होंगे | शाही शायरी
dil hai to muqamat-e-fughan aur bhi honge

ग़ज़ल

दिल है तो मुक़ामात-ए-फुग़ाँ और भी होंगे

सज्जाद बाक़र रिज़वी

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दिल है तो मुक़ामात-ए-फुग़ाँ और भी होंगे
सर है तो अभी संग-ए-गिराँ और भी होंगे

हम से कि है सामान-ए-फ़राग़त भी जुनूँ भी
तस्वीर के पर्दे में निहाँ और भी होंगे

वाँ सिलसिला-ए-ज़ुल्फ़ में ख़म बढ़ते रहेंगे
याँ मशग़ला-ए-ग़म में ज़ियाँ और भी होंगे

वाँ बू-ए-वफ़ा वहम को सह चंद करेगी
याँ रंग-ए-तग़ाफ़ुल पे गुमाँ और भी होंगे

हाँ रस्म-ए-मुदारात-ए-जुनूँ और बढ़ेगी
हाँ दुश्मन-ए-दिल आफ़त-ए-जाँ और भी होंगे

हाँ वज्ह-ए-गिरफ़्तारी-ए-दिल सब किसे मा'लूम
हाँ तर्ज़-ए-सितम-हा-ए-निहाँ और भी होंगे

हाँ और बढ़ेगी क़द-ओ-गेसू की हिकायत
हाँ क़िस्सा-ए-कोताही-ए-जाँ और भी होंगे

भड़केगी अभी आतिश-ए-शौक़ और सर-ए-दार
हाँ शो'ला-लबाँ सर्व-क़दाँ और भी होंगे

हाँ मरहला-ए-शौक़ के उनवाँ हैं अभी और
'बाक़र' से कुछ आशुफ़्ता-बयाँ और भी होंगे