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दिल धुआँ देने लगे आँख पिघलने लग जाए | शाही शायरी
dil dhuan dene lage aankh pighalne lag jae

ग़ज़ल

दिल धुआँ देने लगे आँख पिघलने लग जाए

ज़ीशान अतहर

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दिल धुआँ देने लगे आँख पिघलने लग जाए
तुम जिसे देख लो इक बार वो जलने लग जाए

रक़्स करती हैं कई रौशनियाँ कमरे में
उस का चेहरा न कहीं रंग बदलने लग जाए

तेज़-रफ़्तारी-दुनिया न बदल दे मेआर
शाम के साथ कहीं उम्र न ढलने लग जाए

रौशनी में तिरी रफ़्तार से करता हूँ सफ़र
ज़िंदगी मुझ से कहीं तेज़ न चलने लग जाए

रिसता पानी भी ग़नीमत है वो दिन दूर नहीं
रौज़न-ए-चश्म से जब रेत निकलने लग जाए

रेग-ए-सहरा है तिरे जिस्म के सोने की मिसाल
आँख फ़िस्ले तो कभी पाँव फिसलने लग जाए

शाख़-ए-दिल काट के मिट्टी में दबा दी हम ने
काश ऐसा हो कि ये फूलने-फलने लग जाए

हम भी हंगामा-ए-बाज़ार-ए-जहाँ से गुज़रे
जैसे 'ज़ीशान' कोई नींद में चलने लग जाए