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दिल धड़कनों में जैसे धड़कता उसी का था | शाही शायरी
dil dhaDkanon mein jaise dhaDakta usi ka tha

ग़ज़ल

दिल धड़कनों में जैसे धड़कता उसी का था

नबील अहमद नबील

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दिल धड़कनों में जैसे धड़कता उसी का था
जैसे मिरे वजूद पे चेहरा उसी का था

रखा हुआ था जिस को ज़माने से दूर दूर
हर लब पे उस का तज़्किरा चर्चा उसी का था

आने दिया न चैन कभी एक पल मुझे
मेरे तसव्वुरात में धड़का उसी का था

जिस ने तमाम शहर खंडर में बदल दिया
सिक्का तमाम शहर में चलता उसी का था

यूँ तो हज़ार ज़ख़्म मुझे और भी लगे
लेकिन जो ज़ख़्म सब से था गहरा उसी का था

शिद्दत की प्यास ने मुझे घेरा तो ये खुला
सहरा का जो मकीन था दरिया उसी का था

हम को है आज तक उसी ता'बीर की तलब
आया था कल 'नबील' जो सपना उसी का था

रौशन था जिस चराग़ की लौ से बदन 'नबील'
मुझ को तमाम-उम्र ही धड़का उसी का था