EN اردو
दिल बुझने लगा आतिश-ए-रुख़्सार के होते | शाही शायरी
dil bujhne laga aatish-e-ruKHsar ke hote

ग़ज़ल

दिल बुझने लगा आतिश-ए-रुख़्सार के होते

ज़ेहरा निगाह

;

दिल बुझने लगा आतिश-ए-रुख़्सार के होते
तन्हा नज़र आते हैं ग़म-ए-यार के होते

क्यूँ बदले हुए हैं निगह-ए-नाज़ के अंदाज़
अपनों पे भी उठ जाती है अग़्यार के होते

वीराँ है नज़र मेरी तिरे रुख़ के मुक़ाबिल
आवारा हैं ग़म कूचा-ए-दिलदार के होते

इक ये भी अदा-ए-दिल-ए-आशुफ़्ता-सराँ थी
बैठे न कहीं साया-ए-दीवार के होते

जीना है तो जी लेंगे बहर-तौर दिवाने
किस बात का ग़म है रसन-ओ-दार के होते