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दिल बिछड़ कर जो चला उस बुत-ए-मग़रूर तलक | शाही शायरी
dil bichhaD kar jo chala us but-e-maghrur talak

ग़ज़ल

दिल बिछड़ कर जो चला उस बुत-ए-मग़रूर तलक

मीर हसन

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दिल बिछड़ कर जो चला उस बुत-ए-मग़रूर तलक
देखता मैं भी गया उस के तईं दूर तलक

जान जावे कि न जावे रहे सर या न रहे
छोड़ने के नहीं हम तुझ को तो मक़्दूर तलक

अब नहीं वक़्त तग़ाफ़ुल का सुन ऐ यार-ए-अज़ीज़
पहुँचियो जल्द ज़रा इस दिल-ए-रंजूर तलक

हम भी तब तक हैं कि याँ जल्वा है जब तक तेरा
हस्ती-ए-साया भी सच पूछो तो है नूर तलक

ज़ख़्म-ए-दिल इश्क़ के घर का तो दर-ए-दौलत है
भेज मरहम को न हमदम मिरे नासूर तलक

क़ासिद-ओ-नामा-ओ-पैग़ाम की मत कह कि सबा
अब तो वाँ से नहीं आती दिल-ए-महजूर तलक

मर गए दिन ही को हम हिज्र में सद-शुक्र 'हसन'
काम पहुँचा न हमारा शब-ए-दीजूर तलक