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दिल बदलने से न अफ़्लाक बदल जाने से | शाही शायरी
dil badalne se na aflak badal jaane se

ग़ज़ल

दिल बदलने से न अफ़्लाक बदल जाने से

आलम ख़ुर्शीद

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दिल बदलने से न अफ़्लाक बदल जाने से
शहर बदला मिरी पोशाक बदल जाने से

किस क़दर हो गई आसान हमारी मुश्किल
एक पैमाना-ए-इदराक बदल जाने से

आज भी रक़्स ही करना है इशारों पे हमें
फ़ाएदा कुछ न हुआ चाक बदल जाने से

रास्ता अब भी वही है मिरी मंज़िल भी वही
तेज़-रौ मैं हुआ पेचाक बदल जाने से

भीड़ बढ़ने लगी है मेरे बही-ख़्वाहों की
इक ज़रा सूरत-ए-नमनाक बदल जाने से

नींद आती थी बहुत फ़र्श-ए-ज़मीं पर मुझ को
ख़्वाब रूठे मिरी इम्लाक बदल जाने से

बे-वतन मैं हूँ मगर ख़ुश हैं मिरे घर वाले
इतना हासिल तो हुआ ख़ाक बदल जाने से

बदली बदली सी नज़र आती है दुनिया 'आलम'
बस मिज़ाज-ए-ख़स-ओ-ख़ाशाक बदल जाने से