दिल बदलने से न अफ़्लाक बदल जाने से
शहर बदला मिरी पोशाक बदल जाने से
किस क़दर हो गई आसान हमारी मुश्किल
एक पैमाना-ए-इदराक बदल जाने से
आज भी रक़्स ही करना है इशारों पे हमें
फ़ाएदा कुछ न हुआ चाक बदल जाने से
रास्ता अब भी वही है मिरी मंज़िल भी वही
तेज़-रौ मैं हुआ पेचाक बदल जाने से
भीड़ बढ़ने लगी है मेरे बही-ख़्वाहों की
इक ज़रा सूरत-ए-नमनाक बदल जाने से
नींद आती थी बहुत फ़र्श-ए-ज़मीं पर मुझ को
ख़्वाब रूठे मिरी इम्लाक बदल जाने से
बे-वतन मैं हूँ मगर ख़ुश हैं मिरे घर वाले
इतना हासिल तो हुआ ख़ाक बदल जाने से
बदली बदली सी नज़र आती है दुनिया 'आलम'
बस मिज़ाज-ए-ख़स-ओ-ख़ाशाक बदल जाने से
ग़ज़ल
दिल बदलने से न अफ़्लाक बदल जाने से
आलम ख़ुर्शीद