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दिल-ब-दिल आईना है दैर ओ हरम | शाही शायरी
dil-ba-dil aaina hai dair o haram

ग़ज़ल

दिल-ब-दिल आईना है दैर ओ हरम

पंडित दया शंकर नसीम लखनवी

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दिल-ब-दिल आईना है दैर ओ हरम
हक़ जो पूछो एक दर है दो तरफ़

ख़्वाह काबा ख़्वाह बुत-ख़ाना को जा
दश्त-ए-दिल का रहगुज़र है दो तरफ़

कुफ़्र ओ ईमाँ दोनों जानिब की सुने
इस लिए गोश-ए-बशर है दो तरफ़

रख़्ना-अंदाज़ों की कब छुपती है आँख
चश्म-ए-रौज़न की नज़र है दो तरफ़

बाग़ हो या दश्त हो क़िस्मत 'नसीम'
कोच की अपने ख़बर है दो तरफ़