दीदनी हैं दिल-ए-ख़राब के रंग
आह उस चश्म-ए-पुर-हिजाब के रंग
फ़स्ल-ए-गुल में पड़ें तो ख़ूब खिलें
ख़िर्क़ा-ए-ज़ोहद पर शराब के रंग
शौक़-ए-मय दिल में लब पे हिजव-ए-शराब
हम पे रौशन हैं सब जनाब के रंग
नहीं तौबा की ख़ैर हैं जो यही
जोश-ए-हंगामा-ए-सहाब के रंग
कल के मक़्बूल आज हैं मरदूद
आह इस दौर-ए-इंक़िलाब के रंग
क़ाबिल-ए-दीद हैं विसाल की शब
आरज़ू-हा-ए-कामयाब के रंग
चेहरा-ए-आशिक़ी है पज़-मुर्दा
क्या हुए वो मय-ए-शबाब के रंग
ख़ैल-ए-ख़ूबाँ से एक में भी नहीं
आप के हुस्न-ए-ला-जवाब के रंग
मेरी मायूसियों से हैं पैदा
कशमकश-हा-ए-इज़्तिराब के रंग
दिल के हाथों बहुत रहे हैं ख़राब
'हसरत'-ए-ख़ानुमाँ ख़राब के रंग
ग़ज़ल
दीदनी हैं दिल-ए-ख़राब के रंग
हसरत मोहानी