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धूप में ग़म की मिरे साथ जो आया होगा | शाही शायरी
dhup mein gham ki mere sath jo aaya hoga

ग़ज़ल

धूप में ग़म की मिरे साथ जो आया होगा

साग़र आज़मी

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धूप में ग़म की मिरे साथ जो आया होगा
वो कोई और नहीं मेरा ही साया होगा

ये जो दीवार पे कुछ नक़्श हैं धुँदले धुँदले
उस ने लिख लिख के मिरा नाम मिटाया होगा

जिन के होंटों पे तबस्सुम है मगर आँख है नम
उस ने ग़म अपना ज़माने से छुपाया होगा

बे-तअल्लुक़ सी फ़ज़ा होगी रह-ए-ग़ुर्बत में
कोई अपना ही मिलेगा न पराया होगा

इतना नाराज़ हो क्यूँ उस ने जो पत्थर फेंका
उस के हाथों से कभी फूल भी आया होगा

मेरी ही तरह मिरे शेर हैं रुस्वा 'साग़र'
किस को इस तरह मोहब्बत ने सुनाया होगा