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ढूँढती है इज़्तिराब-ए-शौक़ की दुनिया मुझे | शाही शायरी
DhunDhti hai iztirab-e-shauq ki duniya mujhe

ग़ज़ल

ढूँढती है इज़्तिराब-ए-शौक़ की दुनिया मुझे

नातिक़ गुलावठी

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ढूँढती है इज़्तिराब-ए-शौक़ की दुनिया मुझे
आप ने महफ़िल से उठवा कर कहाँ रक्खा मुझे

ऐ निगाह-ए-मस्त इस का नाम है कैफ़-ए-सुरूर
आज तू ने देख कर मेरी तरफ़ देखा मुझे

यार से हो कर जुदा जौर-ए-फ़लक का ग़म नहीं
हो चुकी वो बात थी जिस बात की पर्वा मुझे

साथ भी छोड़ा तो कब जब सब बुरे दिन कट गए
ज़िंदगी तू ने कहाँ आ कर दिया धोका मुझे