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ढूँडा है हर जगह प कहीं पर नहीं मिला | शाही शायरी
DhunDa hai har jagah pa kahin par nahin mila

ग़ज़ल

ढूँडा है हर जगह प कहीं पर नहीं मिला

हस्तीमल हस्ती

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ढूँडा है हर जगह प कहीं पर नहीं मिला
ग़म से तो गहरा कोई समुंदर नहीं मिला

ये तजरबा हुआ है मोहब्बत की राह में
खो कर मिला जो हम को वो पा कर नहीं मिला

दहलीज़ अपनी छोड़ दी जिस ने भी एक बार
दीवार-ओ-दर ही उस को मिले घर नहीं मिला

सारी चमक हमारे पसीने की है जनाब
विर्से में हम को कोई भी ज़ेवर नहीं मिला

घर से हमारी आँख-मिचोली रही सदा
आँगन नहीं मिला तो कभी दर नहीं मिला