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धूल-भरी आँधी में सब को चेहरा रौशन रखना है | शाही शायरी
dhul-bhari aandhi mein sab ko chehra raushan rakhna hai

ग़ज़ल

धूल-भरी आँधी में सब को चेहरा रौशन रखना है

हुसैन माजिद

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धूल-भरी आँधी में सब को चेहरा रौशन रखना है
बस्ती पीछे रह जाएगी आगे आगे सहरा है

एक ज़रा सी बात पे उस ने दिल का रिश्ता तोड़ दिया
हम ने जिस का तन्हाई में बरसों रस्ता देखा है

प्यार मोहब्बत आह-ओ-ज़ारी लफ़्ज़ों की तस्वीरें हैं
किस के पीछे भाग रहे हो दरिया बहता रहता है

फूल परिंदे ख़ुश्बू बादल सब उस का साया ठहरे
उस ने जब से आईने में ग़ौर से ख़ुद को देखा है

मुझ को ख़ुश्बू ढूँडने आए मेरे पीछे चाँद फिरे
आज हवा ने मुझ से पूछा क्या ऐसा भी होता है

कल जो मैं ने झाँक के देखा उस की नीली आँखों में
उस के दिल का ज़ख़्म तो 'माजिद' सागर से भी गहरा है