EN اردو
धरती से दूर हैं न क़रीब आसमाँ से हम | शाही शायरी
dharti se dur hain na qarib aasman se hum

ग़ज़ल

धरती से दूर हैं न क़रीब आसमाँ से हम

रऊफ़ ख़ैर

;

धरती से दूर हैं न क़रीब आसमाँ से हम
कूफ़े का हाल देख रहे हैं जहाँ से हम

हिन्दोस्तान हम से है ये भी दुरुस्त है
ये भी ग़लत नहीं कि हैं हिन्दोस्ताँ से हम

रक्खा है बे-नियाज़ उसी बे-नियाज़ ने
वाबस्ता ही नहीं हैं किसी आस्ताँ से हम

रखता नहीं है कोई शहादत का हौसला
उस के ख़िलाफ़ लाएँ गवाही कहाँ से हम

महफ़िल में उस ने हाथ पकड़ कर बिठा लिया
उठने लगे थे एक ज़रा दरमियाँ से हम

हद जिस जगह हो ख़त्म हरीफ़ान-ए-'ख़ैर' की
वल्लाह शुरू होते हैं अक्सर वहाँ से हम