धड़कते साँस लेते रुकते चलते मैं ने देखा है
कोई तो है जिसे अपने में पलते मैं ने देखा है
तुम्हारे ख़ून से मेरी रगों में ख़्वाब रौशन है
तुम्हारी आदतों में ख़ुद को ढलते मैं ने देखा है
न जाने कौन है जो ख़्वाब में आवाज़ देता है
ख़ुद अपने-आप को नींदों में चलते मैं ने देखा है
मेरी ख़ामोशियों में तैरती हैं तेरी आवाज़ें
तिरे सीने में अपना दिल मचलते मैं ने देखा है
बदल जाएगा सब कुछ बादलों से धूप चटख़ेगी
बुझी आँखों में कोई ख़्वाब जलते मैं ने देखा है
मुझे मालूम है उन की दुआएँ साथ चलती हैं
सफ़र की मुश्किलों को हाथ मलते मैं ने देखा है
ग़ज़ल
धड़कते साँस लेते रुकते चलते मैं ने देखा है
आलोक श्रीवास्तव