EN اردو
देता नहीं दिल ले के वो मग़रूर किसी का | शाही शायरी
deta nahin dil le ke wo maghrur kisi ka

ग़ज़ल

देता नहीं दिल ले के वो मग़रूर किसी का

मीर मोहम्मदी बेदार

;

देता नहीं दिल ले के वो मग़रूर किसी का
सच है कि न ज़ालिम से चले ज़ोर किसी का

आराइश-ए-हुस्न आईना-रुख़ करते हो हर दम
लेना है मगर दम तुम्हें मंज़ूर किसी का

बे-वजह नहीं ताबिश-ए-अर्बाब-ए-सफ़ा को
है जल्वा-गर इस आईने में नूर किसी का

आता है नज़र याँ जो हर ऐवान-ए-शिकस्ता
यक वक़्त में था ख़ाना-ए-मामूर किसी का

वो शोख़ परी रश्क-ब-कफ़ तेग़-ए-सियह-मस्त
आता है किए शीशा-ए-दिल चूर किसी का

रोकूँ मैं अब उस को सर-ए-राहे कभी आ के
इतना तो मैं रख्खूँ नहीं मक़्दूर किसी का

'बेदार' मुझे याद उसी की है शब-ओ-रोज़
ने बात किसी की है ने मज़कूर किसी का