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देखूँ हूँ यूँ मैं उस सितम-ईजाद की तरफ़ | शाही शायरी
dekhun hun yun main us sitam-ijad ki taraf

ग़ज़ल

देखूँ हूँ यूँ मैं उस सितम-ईजाद की तरफ़

मोहम्मद रफ़ी सौदा

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देखूँ हूँ यूँ मैं उस सितम-ईजाद की तरफ़
जूँ सैद वक़्त ज़बह के सय्याद की तरफ़

ने दाना हम क़यास किया ने लिहाज़ना-ए-दाम
धँस गए क़फ़स में देख के सय्याद की तरफ़

साबित न होवे ख़ून मिरा रोज़-ए-बाज़-पुर्स
बोलेंगे अहल-ए-हश्र सो जल्लाद की तरफ़

पत्थर की लेख था सुख़न उस का हज़ार हैफ़
बोली ज़बान-ए-तेशा न फ़रहाद की तरफ़

तुर्रा के तेरे वास्ते सद-चोब-ए-शानादार
क़ुमरी गई है काटने शमशाद की तरफ़

'सौदा' तू इस ग़ज़ल को ग़ज़ल-दर-ग़ज़ल ही कह
होना है तुझ को 'मीर' से उस्ताद की तरफ़