देखूँ हूँ यूँ मैं उस सितम-ईजाद की तरफ़
जूँ सैद वक़्त ज़बह के सय्याद की तरफ़
ने दाना हम क़यास किया ने लिहाज़ना-ए-दाम
धँस गए क़फ़स में देख के सय्याद की तरफ़
साबित न होवे ख़ून मिरा रोज़-ए-बाज़-पुर्स
बोलेंगे अहल-ए-हश्र सो जल्लाद की तरफ़
पत्थर की लेख था सुख़न उस का हज़ार हैफ़
बोली ज़बान-ए-तेशा न फ़रहाद की तरफ़
तुर्रा के तेरे वास्ते सद-चोब-ए-शानादार
क़ुमरी गई है काटने शमशाद की तरफ़
'सौदा' तू इस ग़ज़ल को ग़ज़ल-दर-ग़ज़ल ही कह
होना है तुझ को 'मीर' से उस्ताद की तरफ़
ग़ज़ल
देखूँ हूँ यूँ मैं उस सितम-ईजाद की तरफ़
मोहम्मद रफ़ी सौदा