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देखा कि चले जाते थे सब शौक़ के मारे | शाही शायरी
dekha ki chale jate the sab shauq ke mare

ग़ज़ल

देखा कि चले जाते थे सब शौक़ के मारे

मोहम्मद अाज़म

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देखा कि चले जाते थे सब शौक़ के मारे
माशूक़ के पहलू में शब-ए-हिज्र गुज़ारे

हम हैं कि हुए हल्क़ा-ए-ज़ंजीर-ए-मोहब्बत
बाक़ी तो गए छूट गिरफ़्तार तुम्हारे

हम चाहने वालों का नहीं कोई ठिकाना
हैं आज सर-ए-नज्द तो कल तख़्त हज़ारे

आ पहुँचे कहाँ जुस्तुजू-ए-यार में इस बार
मिल जाए तो चल भी न सके साथ हमारे

साकिन हो यहाँ कोई तो उस से कोई पूछे
मैं घूम रहा हूँ कि हैं गर्दिश में सितारे

बस देख चुके ख़ूब वो पस्ती ये बुलंदी
इस चर्ख़ से अब जल्द हमें कोई उतारे