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देखा कभू न उस दिल-ए-नाशाद की तरफ़ | शाही शायरी
dekha kabhu na us dil-e-nashad ki taraf

ग़ज़ल

देखा कभू न उस दिल-ए-नाशाद की तरफ़

क़ाएम चाँदपुरी

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देखा कभू न उस दिल-ए-नाशाद की तरफ़
करता रहा तू अपनी ही बेदाद की तरफ़

जिस गुल ने सुन के नाला-ए-बुलबुल उड़ा दिया
रखता है गोश कब मिरी फ़रियाद की तरफ़

मूँद ऐ पर-ए-शिकस्ता न चाक-ए-क़फ़स कि हम
टुक याँ को देख लेते हैं सय्याद की तरफ़

कहते हैं गिर्या ख़ाना-ए-दिल कर चुका ख़राब
आता है चश्म अब तिरी बुनियाद की तरफ़

लीजो ख़बर मिरे भी दिल-ए-ज़ार की नसीम
जावे अगर तू उस सितम-आबाद की तरफ़

'क़ाएम' तू इस ग़ज़ल को यूँही सरसरी ही कह
होना पड़ेगा हज़रत-ए-उस्ताद की तरफ़