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देखा जो साया शब में ये समझा निगाह ने | शाही शायरी
dekha jo saya shab mein ye samjha nigah ne

ग़ज़ल

देखा जो साया शब में ये समझा निगाह ने

महताब अालम

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देखा जो साया शब में ये समझा निगाह ने
शायद वो आज आ गए वा'दा निबाहने

वीराँ सी इस नवाह में आता ही कौन था
आबाद कर दिया है इसे क़त्ल-गाह ने

उन क़ातिलों पे कौन मुक़दमा चलाएगा
जिन को लिया पनाह में आलम-पनाह ने

हर बात पे जो मुझ से ये कहते हैं चुप रहो
क्या अपने हुस्न को भी न देंगे सराहने

क़ाएम उन्हीं फ़क़ीरों के दम से थी सल्तनत
जिन को किया है मुल्क-बदर सरबराह ने

अच्छा हुआ सहर ने उलट दी नक़ाब-ए-फ़िक्र
भटका दिया था रात मुझे वाह वाह ने

काग़ज़ अगर सियाह करें तो करें हरीफ़
सूरज उगाए हैं मिरी फ़िक्र-ओ-निगाह ने