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देख रहा है दरिया भी हैरानी से | शाही शायरी
dekh raha hai dariya bhi hairani se

ग़ज़ल

देख रहा है दरिया भी हैरानी से

आलम ख़ुर्शीद

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देख रहा है दरिया भी हैरानी से
मैं ने कैसे पार किया आसानी से

नदी किनारे पहरों बैठा रहता हूँ
क्या रिश्ता है मेरा बहते पानी से

हर कमरे से धूप हवा की यारी थी
घर का नक़्शा बिगड़ा है नादानी से

अब सहरा में चैन से सोया करता हूँ
डर लगता था बचपन में वीरानी से

दिल पागल है रोज़ पशेमाँ होता है
फिर भी बाज़ नहीं आता मन-मानी से

कम कम ख़र्च करो वर्ना ये जज़्बे भी
बे-वक़'अत हो जाते हैं अर्ज़ानी से

अपना फ़र्ज़ निभाना एक इबादत है
'आलम' हम ने सीखा इक जापानी से