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देख न इस तरह गुज़ार अर्सा-ए-चश्म से मुझे | शाही शायरी
dekh na is tarah guzar arsa-e-chashm se mujhe

ग़ज़ल

देख न इस तरह गुज़ार अर्सा-ए-चश्म से मुझे

इदरीस बाबर

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देख न इस तरह गुज़ार अर्सा-ए-चश्म से मुझे
फ़ुर्सत-ए-दीद हो न हो मोहलत-ए-ख़्वाब दे मुझे

बस-कि गुज़िश्तनी है वक़्त बस-कि शिकस्तनी है दिल
ख़्वाब कोई दिखा कि जो याद न आ सके मुझे

ख़ाम ही रख के पुख़्तगी शक्ल है इक शिकस्त की
आतिश-ए-वस्ल की जगह ख़ाक-ए-फ़िराक़ दे मुझे

हाँ ऐ गुबार-ए-आश्ना मैं भी था हम-सफ़र तिरा
पी गईं मंज़िलें तुझे खा गए रास्ते मुझे

देर से रो नहीं सका दूर हूँ सो नहीं सका
ग़म जो रुला सके मुझे सम जो सुला सके मुझे