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दौलत-ए-हक़ मुझ को हासिल हो गई है | शाही शायरी
daulat-e-haq mujhko hasil ho gai hai

ग़ज़ल

दौलत-ए-हक़ मुझ को हासिल हो गई है

चन्द्रभान ख़याल

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दौलत-ए-हक़ मुझ को हासिल हो गई है
ज़िंदगी अब और मुश्किल हो गई है

अब नहीं आसान दुनिया से गुज़रना
इस की परछाईं मुक़ाबिल हो गई है

लोग मंज़िल की तरफ़ लपके हैं लेकिन
भीड़ में ग़फ़लत भी शामिल हो गई है

साथ तूफ़ान-ए-हवादिस है मगर अब
ज़िंदगी नज़दीक-ए-साहिल हो गई है

दूसरी दुनियाओं की चाहत में देखो
मेरी दुनिया ख़ुद से ग़ाफ़िल हो गई है

दिन हक़ाएक़ से उलझते कट गया फिर
रात लेकिन नज़्र-ए-बातिल हो गई है

जब कभी लफ़्ज़ों को मैं ने दी सदाएँ
इक सदा-ए-ग़ैब नाज़िल हो गई है