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दस्त-ए-सुमूम दस्त-ए-सबा क्यूँ नहीं हुआ | शाही शायरी
dast-e-sumum dast-e-saba kyun nahin hua

ग़ज़ल

दस्त-ए-सुमूम दस्त-ए-सबा क्यूँ नहीं हुआ

अहमद मुश्ताक़

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दस्त-ए-सुमूम दस्त-ए-सबा क्यूँ नहीं हुआ
दर मौसम-ए-बहार का वा क्यूँ नहीं हुआ

ज़ालिम थे वरा-ए-हिसाब-ओ-किताब क्या
उन पर नुज़ूल-ए-क़हर-ए-ख़ुदा क्यूँ नहीं हुआ

उन के सरों पे क्यूँ नहीं टूटीं क़यामतें
अन के घरों में हश्र बपा क्यूँ नहीं हुआ

गूँजी न क्यूँ फ़लक से कोई आयत-ए-ग़ज़ब
ये गुम्बद-ए-सुकूत सदा क्यूँ नहीं हुआ

दिल में हैं किस उमीद के पंजे गड़े हुए
ये मास नाख़ुनों से जुदा क्यूँ नहीं हुआ