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दश्त में जो भी है जैसा मिरा देखा हुआ है | शाही शायरी
dasht mein jo bhi hai jaisa mera dekha hua hai

ग़ज़ल

दश्त में जो भी है जैसा मिरा देखा हुआ है

तनवीर सामानी

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दश्त में जो भी है जैसा मिरा देखा हुआ है
रास्ता उस के सफ़र का मिरा देखा हुआ है

किस लिए चीख़ता चिंघाड़ता रहता है बहुत
मौज-दर-मौज ये दरिया मिरा देखा हुआ है

वक़्त के साथ जो तब्दील हुआ करता है
आइना आइना चेहरा मिरा देखा हुआ है

रंग-ओ-रोग़न मिरी तस्वीर को देने वाला
आब-ए-शफ़्फ़ाफ़ है कितना मिरा देखा हुआ है

किस तरह तुझ को ये बतलाऊँ हवा के झोंके
रेत पर लिक्खा है क्या क्या मिरा देखा हुआ है

किस जगह कौन गड़ा है मुझे मा'लूम है सब
इस तिरे शहर का नक़्शा मिरा देखा हुआ है

रात के बा'द सहर होती है रौशन 'तनवीर'
है अँधेरे में उजाला मिरा देखा हुआ है