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दश्त-ए-ग़म और हर शजर तन्हा | शाही शायरी
dasht-e-gham aur har shajar tanha

ग़ज़ल

दश्त-ए-ग़म और हर शजर तन्हा

मुनीर सैफ़ी

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दश्त-ए-ग़म और हर शजर तन्हा
रात सोई है बे-ख़बर तन्हा

ले के फिरता हूँ दर-ब-दर तन्हा
तेरी यादों का इक नगर तन्हा

सो न जाऊँ ख़िरद के बिस्तर पर
ऐ जुनूँ तुझ को छोड़ कर तन्हा

दिल के दामन में चुभ गई आख़िर
चलती-फिरती हुई नज़र तन्हा

याद फिर चीख़ने लगी उस की
मुझ को कमरे में जान कर तन्हा

चाँद का दर्द माँग ले कोई
मुझ को रहना है उम्र-भर तन्हा