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दर्स-ए-आदाब-ए-जुनूँ याद दिलाने वाले | शाही शायरी
dars-e-adab-e-junun yaad dilane wale

ग़ज़ल

दर्स-ए-आदाब-ए-जुनूँ याद दिलाने वाले

असलम अंसारी

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दर्स-ए-आदाब-ए-जुनूँ याद दिलाने वाले
आ गए फिर मिरी ज़ंजीर हिलाने वाले

किस तरह खोए गए अक्स-ए-रवाँ की सूरत
शहर-ए-हैराँ में तिरा खोज लगाने वाले

ग़ौर से देख कोई है पस-ए-तस्वीर-ए-ख़िज़ाँ
वर्ना किस सम्त गए रंग जमाने वाले

ख़म-ए-मेहराब पे सदियों की सियह गर्द भी देख
ताक़-ए-वीराँ में लहू अपना जलाने वाले

ज़हर अब ज़हर है करता नहीं कार-ए-तिरयाक
मर गए ज़हर को तिरयाक बनाने वाले

फ़स्ल-ए-बे-बर्ग कुछ ऐसी भी तो बे-रंग नहीं
दास्ताँ अहद-ए-बहाराँ की सुनाने वाले

दफ़-ए-गुल टूट गई दस्त-ए-सबा में लेकिन
रक़्स करते ही रहे वज्द में आने वाले

बुझ गए शोख़ दरीचों में दमकते महताब
सो गए रात की तक़दीर जगाने वाले

सोचता हूँ कि ये मामूरा-ए-ग़म ये दुनिया
किस लिए तू ने बनाई है बनाने वाले