EN اردو
दर्द थमता ही नहीं सीने में आराम के बा'द | शाही शायरी
dard thamta hi nahin sine mein aaram ke baad

ग़ज़ल

दर्द थमता ही नहीं सीने में आराम के बा'द

सय्यद मोहम्मद असकरी आरिफ़

;

दर्द थमता ही नहीं सीने में आराम के बा'द
हम तो जलते हैं चराग़ों की तरह शाम के बा'द

बस यही सोच के अक्सर मैं लरज़ जाता हूँ
जाने क्या होगा मिरा हश्र के हंगाम के बा'द

इश्क़ कर बैठे मगर हम ने ये सोचा ही नहीं
ख़ाक हो जाएँगे हम इश्क़ के अंजाम के बा'द

लिख के काग़ज़ पे तिरा नाम क़लम तोड़ दिया
कोई भाया ही नहीं मुझ को तिरे नाम के बा'द

ग़म के सैलाब में फिर बह गया मस्कन मेरा
चैन पाया ही था इक बारिश-ए-आलाम के बा'द

मिरे क़ातिल ने मिरी लाश पे दम तोड़ दिया
वो पशेमाँ था बहुत क़त्ल के इल्ज़ाम के बा'द

हम ने सीखा है हुनर फ़त्ह-ओ-ज़फ़रयाबी का
अज़्म अपना है जवाँ कोशिश-ए-नाकाम के बा'द

संग-सारी-ओ-मलामत हुए अब अपने नसीब
हम तो बरबाद हुए कूचा-ए-असनाम के बा'द

क्या ख़िज़ाँ आई कि बरबाद हुआ सारा चमन
रह गई आह-ओ-फ़ुग़ाँ गुलशन-ए-गुलफ़ाम के बा'द